TISS Student Suspended: महाराष्ट्र की राजधानी मुंबई में टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंस (TISS) ने एक पीएचडी छात्र को राष्ट्र-विरोधी गतिविधियों में शामिल होने के लिए दो साल के लिए कॉलेज से निलंबित कर दिया. छात्र संगठन प्रोग्रेसिव स्टूडेंट्स फोरम ने आरोप लगाया कि केंद्र सरकार की छात्र विरोधी नीतियों के खिलाफ जनवरी में हुए विरोध मार्च में छात्र शामिल था, जिसके चलते उसे दो साल के लिए कॉलेज से सस्पेंड कर दिया है. हालांकि, प्रशासन ने “छात्रों के लिए बनाई गई अनुशासन संहिता का गंभीर उल्लंघन” का दावा किया है.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, बीते 18 अप्रैल को जारी निलंबन आदेश में छात्र रामदास प्रिंसी शिवानंदन को भी TISS के सभी कैंपस से प्रतिबंधित कर दिया गया है और 7 मार्च को उन्हें भेजे गए कारण बताओ नोटिस का हवाला दिया गया है, जिसमें अन्य गतिविधियों की सूची के साथ मार्च में उनकी भागीदारी पर सवाल उठाया गया है.
7 मार्च को जारी हुआ कारण बताओ नोटिस
स्टूडेंट रामदास प्रिंसी शिवानंदन को भेजे गए कारण बताओ नोटिस के बारे में कहा गया है कि इस नोटिस के बाद गठित की गई एक समिति ने 17 अप्रैल को अपनी सिफारिशें पेश कीं. जिसमें रामदास को अगले दो सालों के लिए TISS के कैंपस में आने पर रोक लगा दी गई है.
क्या है मामला?
7 मार्च को जारी नोटिस में कहा गया है कि रामदास ने पीएसएफ-टीआईएसएस के बैनर तले विरोध प्रदर्शन में भाग लेकर संस्थान के नाम का गलत इस्तेमाल किया है. रामदास ने नाम का उपयोग करके संस्थान के बारे में गलत धारणा बनाई. जोकि शिक्षा मंत्रालय के तहत आता है. इस साल जनवरी में संसद मार्च राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के खिलाफ 16 छात्र संगठनों के संयुक्त मंच यूनाइटेड स्टूडेंट्स ऑफ इंडिया के बैनर तले “शिक्षा बचाओ, अस्वीकार करो, भारत बचाओ, भाजपा को अस्वीकार करो ” के नारे के साथ आयोजित किया गया था.
इस मामले को लेकर छात्र संगठन पीएसएफ ने कहा है कि “मार्च राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के रूप में बीजेपी और उसकी छात्र विरोधी नीतियों के खिलाफ छात्रों की आवाज उठाने का एक कोशिश थी. ऐसे में, एक छात्र को सस्पेंड करके और उसकी पढ़ाई रोककर दो साल के लिए परिसर में प्रवेश को रोकने की कोशिश की जा रही है.” दलित समुदाय से ताल्लुक रखने वाले पीएचडी के स्टूडेंट रामदास पीएसएफ के पूर्व महासचिव हैं. फिलहाल, वह स्टूडेंट फेडरेशन ऑफ इंडिया की केंद्रीय कार्यकारी समिति के सदस्य हैं, जो पीएसएफ की छात्र संस्था है. वह एसएफआई महाराष्ट्र राज्य समिति के संयुक्त सचिव भी हैं.
सोशल मीडिया पोस्ट पर जताई थी आपत्ति
संस्थान ने अपने 7 मार्च के कारण बताओ नोटिस में जनवरी से रामदास के सोशल मीडिया पोस्ट पर भी आपत्ति जताई थी, जिसमें छात्रों से 26 जनवरी को डॉक्यूमेंट्री “राम के नाम” की स्क्रीनिंग में शामिल होने का आह्वान किया गया था और इसे “अपमान का प्रतीक” बताया था. पीएसएफ का कहना है कि टीआईएसएस में इसकी आधिकारिक तौर पर कई बार स्क्रीनिंग की जा चुकी है. ये डॉक्यूमेंट्री जनता के देखने के लिए यूट्यूब पर भी उपलब्ध है और इसे दूरदर्शन पर भी प्रदर्शित किया गया है.
हालांकि, वर्तमान TISS प्रशासन ऑनलाइन क्षेत्र में भी उन आवाज़ों की निंदा करना चाहता है. पीएसएफ ने आरोप लगाया कि प्रशासन की कार्रवाई दलित छात्रों के भविष्य की कीमत पर सत्तारूढ़ बीजेपी सरकार के समर्थन को उजागर करती हैं.
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