केंद्र ने बुधवार (31 जुलाई, 2024) को सुप्रीम कोर्ट में उस याचिका का विरोध किया जिसमें खनिज संपन्न राज्यों ने 1989 से खनिजों और खनिज युक्त भूमि पर उसके की ओर से लगाई गई रॉयल्टी वापस करने का अनुरोध किया गया है. केंद्र ने कहा कि उसे राज्यों को पूर्वव्यापी प्रभाव से रॉयल्टी वापस करने के लिए कहने वाले किसी भी आदेश के बहुआयामी प्रभाव होंगे.
सुप्रीम कोर्ट ने 25 जुलाई को एक ऐतिहासिक फैसले में कहा था कि राज्यों के पास खदानों और खनिज वाली भूमि पर कर लगाने का विधायी अधिकार है और खनिजों पर दी जाने वाली रॉयल्टी कोई कर नहीं है. कोर्ट के इस फैसले से खनिज संपन्न राज्यों के राजस्व में भारी वृद्धि होगी, लेकिन इससे फैसले के क्रियान्वयन के संबंध में एक और विवाद खड़ा हो गया.
विपक्षी दलों द्वारा शासित कुछ खनिज संपन्न राज्यों ने सुप्रीम कोर्ट से इस फैसले को पूर्वव्यापी प्रभाव से लागू करने का अनुरोध किया ताकि वे केंद्र से रॉयल्टी वापस मांग सकें. बहरहाल, केंद्र ने ऐसे किसी आदेश का विरोध करते हुए कहा कि इसका बहुआयामी प्रभाव होगा. खनन से जुड़ी कंपनियों ने भी खनिज वाले राज्यों को रॉयल्टी वापस करने के मुद्दे पर केंद्र के दृष्टिकोण का समर्थन किया है.
केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि भारतीय जनता पार्टी (BJP) शासित मध्य प्रदेश और राजस्थान जैसे राज्य फैसले को आगामी प्रभाव से लागू करवाना चाहते हैं. बहुमत से दिया गया 200 पेजों का यह फैसला भारत के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ ने खुद और जस्टिस ऋषिकेश रॉय, जस्टिस अभय एस ओका, जस्टिस जे बी पारदीवाला, जस्टिस मनोज मिश्रा, जस्टिस उज्जल भूइयां, जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की ओर से लिखा है.
नौ सदस्यीय बेंच की जज जस्टिस नागरत्ना ने बहुमत के फैसले से असहमति जताई थी. उन्होंने कहा था कि अगर खनिज संसाधनों पर कर लगाने का अधिकार राज्यों को दे दिया गया तो इससे संघीय व्यवस्था चरमरा जाएगी क्योंकि वे आपस में प्रतिस्पर्धा करेंगे और खनिज विकास खतरे में पड़ जाएगा. रॉयल्टी वह भुगतान है जो उपयोगकर्ता पक्ष बौद्धिक संपदा या अचल संपत्ति परिसंपत्ति के मालिक को देता है.
यह भी पढ़ें:-
‘एक हफ्ते पहले जारी हुआ था अलर्ट, केरल सरकार ने किया नजरअंदाज’, वायनाड हादसे पर बोले अमित शाह