Saturday, July 27, 2024
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भले ही सुलझ गया हो गठबंधन का गणित, फिर भी बिहार में आसान नहीं होने वाली बीजेपी की राह, ये रही वजह

Lok Sabha Election 2024 in Bihar: आगामी लोकसभा चुनाव की उल्टी गिनती शुरू हो चुकी है. सभी दल हर राज्य में जीत का फॉर्मूला तलाशने में लगे हैं. बीजेपी की अगुवाई वाली एनडीए भी 400 पार के नारे को लेकर लगातार अपने कुनबे को मजूबत करने में जुटी है, लेकिन उसके लिए बिहार की राह इतनी आसान नहीं है.

यही वजह है कि बीजेपी के लिए चाणक्य माने जाने वाले अमित शाह ने नीतीश के लिए सभी दरवाजे हमेशा के लिए बंद होने के अपने बयान से यू-टर्न लेते हुए नीतीश कुमार को फिर से एनडीए में शामिल कर लिया. इतना ही नहीं, दोनों दलों के बीच पहले की तरह ही सीटों का बंटवारा भी हुआ है. आइए जानते हैं ऐसी चार वजहें जिनकी वजह से बीजेपी के लिए बिहार की राह इतनी आसान नहीं है.

पहला कारण

CM नीतीश कुमार की घटती लोकप्रियता

एनडीए को 2019 के लोकसभा चुनाव में बिहार में 53% वोट मिला था और गठबंधन ने यहां लोकसभा की 40 सीटों में से 39 पर जीत दर्ज की थी. हालांकि, अब काफी कुछ बदल गया है. राजनीतिक एक्सपर्ट का कहना है कि मोदी का जादू भले ही इस हिस्से में कम नहीं हुआ हो, लेकिन उनके साथी नीतीश की छवि बार-बार पलटी मारने से खराब हुई है. पूरे राज्य में नीतीश कुमार की लोकप्रियता का ग्राफ काफी गिरा है. एक्सपर्ट मानते हैं कि बार-बार पलटने की वजह से अब वह भीड़ खींचने वाले या अपने दम पर वोट लेने वाले नेता नहीं रहे हैं.

दूसरा कारण

दलितों पर पकड़ 2019 के चुनाव जैसी नहीं

2019 में हुए लोकसभा चुनाव में लोजपा के राम विलास पासवान भी मौजूद थे. भले ही उनकी पार्टी और उनके बेटे एनडीए में अब भी शामिल हैं, लेकिन राम विलास पासवान का फैक्टर मिसिंग है. राजनीतिक विशेषज्ञों की मानें तो राम विलास पासवान की 6-7 फीसदी दलित वोट बैंक पर अच्छी पकड़ थी, लेकिन उनके निधन के बाद यह कमजोर होता दिख रहा है. यही नहीं, लोजपा दो हिस्सों में बंट चुकी है. रही सही कसर हाल ही में हुए सीट बंटवारे ने पूरी कर दी, जिसमें चिराग के चाचा पशुपति पारस वाले गुट को एक भी सीट नहीं दी गई है. बताया जा रहा है कि इससे नाराज पशुपति एनडीए से निकलकर इंडिया में शामिल हो सकते हैं. अगर वह एनडीए से अलग मैदान में उतरते हैं तो कुछ न कुछ नकुसान जरूर पहुंचाएंगे.  

तीसरा कारण

लेफ्ट की I.N.D.I.A गठबंधन में एंट्री

बिहार में इस बार सीपीआई-एमएल, सीपीएम और सीपीआई भी  I.N.D.I.A गठबंधन में शामिल हो चुकी है. इससे आरजेडी-कांग्रेस गठबंधन को मजबूती मिल सकती है. वामपंथी 2019 में हुए  लोकसभा चुनाव बिहार में किसी भी गठबंधन का हिस्सा नहीं थे. बात अगर लेफ्ट की करें तो 2019 के चुनाव में इन तीनों को संयुक्त रूप से करीब 10% वोट मिले थे. अगर यह 10 प्रतिशत वोट राजद-कांग्रेस के साथ जुड़ जाए तो उलटफेर हो सकता है. दरअसल, 2019 में कांग्रेस और आरजेडी को 31% वोट मिले थे.

चौथा कारण

तेजस्वी की बढ़ती लोकप्रियता

अगस्त 2022 से जनवरी 2024 तक दूसरी बार डिप्टी सीएम का कार्यभार संभालने के दौरान तेजस्वी यादव की छवि काफी बेहतर हुई. उनकी लोकप्रियता भी बढ़ी है. तेजस्वी ने अकेले दम पर बिहार में बेरोजगारों को लाखों नौकरियों का वादा करके नवंबर 2020 के विधानसभा चुनावों के दौरान राजद को सबसे बड़ी पार्टी बनाने में मदद की थी. जब उन्होंने डिप्टी सीएम का पद संभाला तो उन्होंने केवल 17 महीनों में अपना वादा पूरा किया. इससे युवाओं के बीच उनकी पॉपुलैरिटी बढ़ी है.

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